आज हम बात करने वाले हैं प्रो आजमी के बारे में, जोकि कभी बाकें हुआ करते थे। बांके रा’म का जन्म भारत के आजमगढ़ के गांवों बिलरिया इंजन में एक कट्टर हि’न्दू परि वार में हुआ था। इसके अलावा बांके राम को बचपन से ही पढ़ने लिखने का खुब शौक था। एक दिन यु ही पढ़ते पढ़ते दिन ए हक का हिंदी अनु वाद मिला। इस किताब में ये लिखा था कि अ’ल्ला’ह के नजर में वास्तव घर्म इ’स्ला’म है।
उन्हें ये लाइन सोचने पर मज बूर कर दिया कि बार बार पढ़े। उन्हें ये लाइन काफी गहरा असर डाला बार बार उन्होंने इस बारे में सोचा। इ’स्ला’म के बारे और पढ़ने और जानने की लालसा जगी। इसके बाद उन्होंने कु’रान पाक का हिंदी तर्जुमा पढ़ा। चुंकि वो क’ट्टर हि’न्दू थे। उन्होंने फौरन इस्ला’म के बारे में पढ़ने के बाद हिं’दु ध’र्म के बारे में जानना चाहा।
उन्होंने हि’न्दू घ’र्म के बारे में जानने के बाद संतुष्टि नहीं मिल रही थी। उसके बाद उन्होंने अपने सह पाठी के देखते हुए दरस ए कु’रा’न के बारे में जाना। उसके बाद वह घीरे घीरे इ’स्ला’म के ओर आकर्षित हुए कुरान की आयतें उनके दिलों में घर कर गया और उन्होंने इस्लाम ले आए। उसके बाद उन्होंने,
इस्ला’म लाया तथा बांके राम से जिया उल रहमान आजमी बन गए। फिल हाल आजमी एक प्रसिद्ध विद्वान तथा प्रसिद्ध व्य क्तित्व है तथा सऊदी अरब में रहते हैं। हदीस के विज्ञान में उनके मुल योग दान की मान्यता के कारण उन्हें सऊदी अरब की नाग रिकता मिली है।
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